इस आलोख को पढने से पूर्व यह निवेदन है कि आप इसको शुरू से ( भाग-1 से) पढें ।
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उक्त पूर्व आलेख पर सर्वप्रथम टिप्पणी श्री पवन गुप्ता जी की प्राप्त हुयी है जिनके जन्म कुण्डली के प्रथम भाव में गुरू स्थित है तो आज हम जानते है कि लाल किताब के अनुसार प्रथम भाव में गुरू स्थित होने का क्या फलादेश है।
हस्तरेखा -
लाल किताब इतने वैज्ञानिक तरीके पर आधारित है कि इसमें जन्म कुण्डली के अनुसार आपकी हस्तरेखाए भी बतायी गयी है ।यदि आप पुरूष है तो अपना दांया हाथ व यदि आप स्त्री है तो अपना बांया हाथ देखे यहां पर जो चित्र दिया जा रहा है उसमे तीन निशान दिये गये हैं एक कनिष्ठा अंगुली व अनामिका अंगुली के लगभग मध्य में (ज्यादा अनामिका उंगली की तरफ ) अग्रेजी अक्षर Y जैसा निशान हैं ।दुसरा अग्रेंजी अक्षर U जैसा निशान है जो कनिष्ठा उंगली के लगभग नीचे होता है ।
तीसरा तर्जनी अंगली के नीचे से जो लम्बी रेखा जाती है वो कलाई के पास तीर की तरह दो शाखाओं में फट जाती है
यदि आपकी कुण्डली सही है तो इन तीनो निशानो में से कम से कम एक या दो या तीनो ही आपकी हथेली में हैं तो ही लाल किताब के अनुसार आपकी लग्न कुण्डली में प्रथम स्थान में गुरू स्थित है ।
यदि आपकी हस्तरेखा में कुण्डली के प्रथम स्थान में गुरू होने के इन तीन सकेंतो में से एक, दो या तीनो सकेंत है तो ही ये फलादेश आप पर लागू होगा यदि ये निशान नहीं है तो सभंव है कि आपकी कुण्डली गलत बनी हो उसमें जन्म समय,स्थान आदि में कोई अतंर हो ।
यदि प्रथम भाव में सिर्फ गुरू हो दुसरा कोई ग्रह नहीं हो व सातवें भाव में भी कोई न कोई ग्रह हो मतलब सातवां खाना खाली नहीं हो तो जातक पढाई में होशियार होता है तथा बी.ए. या उससे भी उॅची डीग्री पास होता है तथा अपनी विधा के बल पर धनवान बन सकता है ।
पहले खाने में गुरू व पाॅचवे खाने में बुध हो तो राजयोग बनता है अर्थात राजा की तरह होता है ।
प्रथम भाव मेें गुरू वाले का भाग्य अपने दिमाग से ( दुसरो की सलाह न मानकर अपने दिमाग से काम करने पर ) व सरकारी कार्मिको के साथ मित्रता रखने पर बढता है ऐसे व्यक्ति को अपना भाग्य जगाने के लिए -
1. धर्म पर चलना चाहिए (धर्म का अर्थ यहां इमानदारी, व नैतिकता का आचरण माना जावे )
2. दयालुता रखनी चाहिए ।
3. दुसरो की सलाह की जगह अपनी अतंरात्मा की माननी चाहिए ।
4. सरकारी कर्मचारियों व अधिकारीयों से मित्रता व सम्पर्क रखाना चाहिए ।
आम तौर पर प्रथम स्थान में गुरू वाले लोगों की आखें की दृष्टि कभी खराब नहीं होती तथा उनके चश्मा नहीं लगता यदि फीर भी लगा है तो सूर्य का उपाय ( चाशुषोपनिषद ) करने से हट सकता है ।
इस भाव वाले जातक शेर की तरह गुस्सा होते हुए भी साफ दिल के शांत वृति के मनुष्य होतें है जिनमें चालाकी को फोरन समझने ओर रोक देने की शक्ति होती है ।
शत्रुओं के होते हुए भी ऐसे जातक डरते नहीं है तथा विजय सदा साथ देती है।
परन्तु प्रथत भाव में गुरू होने के साथ यदि सातवां भाव खाली हो तो गुरू का पुरा लाभ नहीं होता ऐसे व्यक्ति का भाग्य शादी के बाद पत्नी से व ससुराल वालो से अच्छें सबंध बनाये रखे तो ही ज्यादा तरक्की करता है ।
ऐसे जातक ( प्रथम भाव में गुरू व सातवा खाली ) वाले की शादी 28 वर्ष की आयु से पुर्व कर दी जावे तो उसके पिता को हृदय व ब्लड प्रैशर आदि बीमारियां हो सकती है।
दरअसल प्रथम भाव में गुरू व सातवां भाव रिक्त वाले जातक के पिता को अमुमन हद्वय की बीमारियां होने के आसार होते है।
ऐसी स्थिति कब ज्यादा लागू होती है जब
1. गुरू प्रथम व सातवा खाली या राहु आठवें या शनि सातवे भाव में हो तो जातक के पिता को हद्वयघात,अस्थमा, दिल की बीमारियों के होने के ज्यादा चासं होते है इसलिए ऐसे जातक पिता जी के उचित व्यायाम ,खानपान का ध्यान रखें ।
2. ऐसे जातक की शादि 24 वें से 27 वें साल के मध्य कर दी जावे तब
3. जातक के लडका पैदा होने के बाद
4. जातक के अपनी कमाई से मकान बनाने पर
ऐसा जातक 27-28 साल की आयु में पिता से अलग भी हो सकता है उसकी पिता से अनबन या बोलचान बंद हो सकती है ।
उपाय - पिताजी की सेहत अच्छी रखने व दीघार्यु के लिये जातक को 400ग्राम गुड़@ खाण्ड़ @शक्कर निर्जन स्थान में दबा कर आनी चाहिये ।
इस जातक की माता इसके लिये अच्छी होती है परन्तु इसकी माता व इसकी पत्नी में सबंध अच्छे नहीं होते ।
लग्न में गुरू वाजे जातक की 50 वर्ष की आय पूर्ण होने पर उसके 51 वे वर्ष में उसकी माता का स्वास्थ्य गंभीर हो सकता है ( कृपया ध्यान रखे ऐसा होगा ही ये आवश्यक नहीं है इसमें अन्य खानो के ग्रह माता के खुद के ग्रह भी देखने चाहिये व ईश्वर इच्छा भी बलवती है लाल किताब जो कि मूल रूप से उर्दु भाषा में है उसमे भी लिखा है ‘‘ये दुनियावी हिसाबकिताब है कोई दावा ए खुदाई नहीं ।’’)
प्रथम स्थान में गुरू व सातवें स्थान में मंगल हो तो व्यक्ति जागीरदार परिवार से या खानदानी रईस परिवार से होता है ।
सूर्य खाना सं. 9 में हो व गुरू 1 में हो तो ऐसे व्यक्ति की खुद की आयु व उसके परिवार की आयु भी उसकी इच्छानुसार लम्बी होती है।
लग्न में गुरू वाला व्यक्ति यदि निर्धन हो तो उसको किसी के आगे हाथ नही फेला कर अपने भाग्य पर सतोंष रखना चाहिये तो वो धनवान बन सकता है ।
पितृ ऋण - लग्न में गुरू वाले के 2, 5, 9 वें व 12 वें स्थान में यदि बुध, शुक्र, शनि व राहु में से कोई भी ग्रह हो तो ये स्थिति पितृ ऋण कहलाती है ( यद्पि पहले में गुरू च 5 वें में बुध हो तो राजयोग भी होता है ।) पितृ ऋण का अर्थ है पिछले जन्म में पितरों, पूर्वजों, पिता व कुलगुरू का अपमान किया था उसका श्राप भोगना पड़ता है पितृ ऋण से क्या-क्या होता है जानिए -
1. पितृ ऋण की स्थिति में जातक की 8 से 21 वर्ष की आयु दुखद संघर्षमय बीतती है।
2. गुरू प्रथम व शनि 5 वें में होना भी पितृ ऋण का घोतक है ऐसे में 36 वर्ष की आयु से 49 वर्ष की आयु के बीच ‘‘ बुरे कामों के जोर से स्वास्थ्य खराब पेशाब ओर शौच जाने की नाली तक दुखने लगे ’’ ऐसा लाल किताब कहती है इसका अर्थ है कि 36 वर्ष से 49 वर्ष के बीच ऐसे जातक यदि बुरे काम ( यौन सबंध ज्यादा बनाने में रहना ) करता है तो उसको बवासीर, शौच के समय जलन, प्रोस्टेट की बीमारी, पेशाब में जलन हो सकती है । साथ ही भाग्य साथ नहीं देवे दिल हिला देने वाले काम हो जो दुख देवे डरावनी घटनाए हो ।
इस आयु के मध्य खुद के बनाए मकान पाप ओर गुनाह के ठिकाने बन जावे इन मकानों में रहने से खुद व सतांन बीमार रहे
इसका उपाय यह है - 1. यौन सबधों में शुचिता, नैतिकता बनाये रखे व ज्यादा कामुक न बनें ।
2. 400 ग्राम बादाम हनुमानजी, शनि के मदिंर में ले जावे आधे वहा चढाकर आधे प्रसाद के रूप में घर में ले आवें व हमेशा घर में रखे ( एयर टाईट पैक करके रखें ताकि खराब नहीं होवे ये बादाम जिदंगी भर रखें अगर खराब हो जावे तो नदी में प्रवाहित करके वापस करे )
3. गुरू प्रथम व शनि 9 हो तो स्वयं का स्वास्थ्य खराब रहता है ( उपाय वही ब्रहमचर्य या यौन सबधं नैतिक व कम से कम उचित समय अतंराल से ही बनाए)
4. गुरू प्रथम व शनि 7 में हो तो पिता से अलग होने के योग है ।
5. पितृ ऋण से आपकी उच्य शिक्षा में अड़चने आती रहेगी जब भी उच्य शिक्षा का प्रयास करेगें बीच में ही छोड़ना पडेगा।
पितृ ऋण की पहचान - अपने पैतृक घर , स्वयं के बनवाए घर के दरवाजे पर जाकर खड़े हो जावे । अपने सामनें देखे आपके सामनें से 20 कदम से 50 कदम दुर या आपके बायें तरफ 20 कदम से 50 कदम दुर कोई पीपल का पेड़ , मंदिर है तो पितृ ऋण ओर भी पुख्ता है।
भगवान ने वही इलाज भी दिया है इस पीपल के पेड़ में पानी देना, इसकी देखभाल करना व उस मंदिर में सहायता देना मंदिर में रहने वाले पुजारी , पुरोहित की सेवा करना ही पितृ ऋण का सबसे बड़ा उपाय है ।
प्रथम भाव में गुरू होने व ग्रहों से बने अन्य योग
1. प्रथम गुरू ओर राहु 8 या 11 में हो तो आखें खराब हो सकती है पिता को दमा, हार्ट की बीमारिया हो सकती है खुद का दिमाग बिगड जावे या टागों की बीमारी टांग कापना, टांग सूखना आदि बीमारीया हो सकती है ।
2. प्रथम गुरू व सूर्य 9 या 11 में तो मुकदमा बाजी , दीवानी उलझनो में धन हानी ( चाहे फैसला जातक के हक में ही हो ) परन्तु भाग्य खराब व हिम्मत जबाब दे देगी ।
3. प्रथम गुरू व 8 या 11 में बुध, शुक्र, राहु व शनि हो तो जातक दूसरो की निदां करे व दुसरो को श्राप देवे इससे उल्टा असर होगा व दुसरो की निदां करने व श्राप देने से ऐसे जातक का खुद का बुरा होगा ।
विशेष - लग्न ( प्रथम भाव ) में गुरू वाले सभी जातक दूसरो की निदां, चुगली व श्राप देना तो छोड ही देवे इसमे ही वो बरबाद होते है ।
क्रमशः अगला भाग 15-20 दिन में प्रकाशित होगा ।
आपकी जन्म पत्रिका के लग्न में जो ग्रह हो वो कमेंट में लिखे अगले 2 भागों में राहु ग्रह एंव शनि ग्रह लग्न में होने पर प्रकाश डाला जायेगा ।
आपकी लग्न में गुरू , राहु, शनि के अलावा कोई ग्रह हो तो कमेंट में लिखे ताकि उससे अगला भाग उस ग्रह पर लिखा जा सके ।
इस आलेख का अगला भाग निम्न लिंक पर पढें:-
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